Friday 15 February 2013

गज़ल 1

अच्छा है  की  मेरे  देश  में  दो  तारीखें  आती  है
दिखाने को ही सही जो संस्कृति की यादें आती है।

ये जो पश्चिम की हवा है बे-अंत, सब भुला दिया 
अपनी पुरानी ऋतुओं की जो केवल यादें आती हैं।

मुद्दतों से कुछ कर गुजरने वाले सिरफिरे नहीं देखे
सियासत के  लोगों  को  तो   केवल  बातें  आती  है।

खाली  ज़ेब  और  थकन  लिए  लेटा  हूँ  घर  में
बेटी पाँव दबाती है और मूफ़लिसी मुझे जगाने आती है।

किसकी कमी  खलती  होगी  यहाँ  शहर-ए-घर में, सोचा  है
बच्चों को दूध पिलाने आया और बाई रोटियाँ पकाने आती है।

मिलती   होगी  तालीम  कहीं  रश्क-इश्क  की  उन्हें  'रोहित'
जो हर रोज नई अदाएँ इन ख़ूबरूओं की, हमें सताने आती है।


(रश्क= इर्ष्या, ख़ूबरूओं=सुन्दरियों)

from Googl image 
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(मेरे प्यारे साथियों,
मैं अभी 2nd ग्रेड शिक्षक भर्ती परीक्षा (RPSC) की तैयारी कर रहा हूँ इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत को अलविदा कह रहा हूँ। तो जाहिर है की मैं आपके ब्लोग्स पर भी नहीं पहुँच पाउँगा ..... उसके लिए मैं दिल से माफ़ी चाहता हूँ। लेकिन जब भी लोटुंगा सबसे पहले आप सभी के ब्लोग्स पढना चाहूँगा। और हाँ ...ये मेरी पहली गज़ल है ..कैसी लगी कृपा जरुर बताना और सुझाव भी सादर आमंत्रित है।
आशा करता हूँ की आपकी दुआ, प्यार और Good  वाला  Luck  हमेशा मेरे साथ रहेगा।)